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माँ की लोरी (maa ki lori )

माँ की लोरी (maa ki lori ) : मीठी नींद

अब वो मीठी नींद कहाँ है,
जो माँ की लोरी (maa ki lori ) सुनकर आती थी,
अब वो किस्से-कहानियां कहाँ है,
जिन्को माँ हर रात सुनाती थी,
*        *        *         *
याद पुराने दिनों की,
कभी-कभी आ जाती है,
मीठी लोरी का संगीत,
जब सुनता हूँ मैं कहीं से,
फिर वो ही मस्ती छा जाती है,
बदल रहा है वक्त पुराना,
किस्से -कहानियों का वो ज़माना,
थोडा माँ की परवरिश का बदलना भी है जारी,
कुछ दुनिया के रंग बदले हैं,
कुछ सच बोलने के ढंग बदले हैं,
पर माँ की डांट बच्चों को,
आज भी लगती है प्यारी,
कहाँ ग‌ई वो दादी माँ,
जो सबको डांट लगाती थी,
अब वो मीठी नींद कहाँ है,
जो माँ की लोरी (maa ki lori ) सुनकर आती थी,
अब वो किस्से-कहानियां कहाँ है,
जिन्को माँ हर रात सुनाती थी,
*        *        *         *
माँ-बच्चों में हिसाब-किताब,
कुछ रिश्तों में मोल-भाव,
आज भी नहीं होता है,
मुफ्त मिले माँ की ममता,
कौन दिखाए माँ बिन रास्ता,
इस दुनिया में हर बच्चा,
आज भी बिन माँ के नहीं सोता है,
आज़ कहाँ वो बड़े-बड़े खुले आँगन,
जहाँ बैठकर अपनी सखियों के संग,
माँ अपने दिल की बातें बताती थी,
अब वो मीठी नींद कहाँ है,
जो माँ की लोरी (maa ki lori ) सुनकर आती थी,
अब वो किस्से-कहानियां कहाँ है,
जिन्को माँ हर रात सुनाती थी,
*        *        *         *
दिन गुजरते थे गलियों की मिट्टी खाकर,
सबके दिलों का मिजाज बदल जाता था,
घर में एक चिट्ठी आकर,
माँ सुबह -सुबह पैदल चल के,
पानी भरती थी नल से,
बच्चे भी चला करते थे पीछे -पीछे,
जहाँ सोए रहते हैं बच्चे आजकल के,
खूले आंगन हो ग‌ए छोटे,
काश वो ही दिन फिर लौटें,
जहाँ माँ पालने में ब‌च्चों को,
सारा-सारा दिन झूला झूलाती थी ,
अब वो मीठी नींद कहाँ है,
जो माँ की लोरी (maa ki lori ) सुनकर आती थी,
अब वो किस्से-कहानियां कहाँ है,
जिन्को माँ हर रात सुनाती थी,
*        *        *         *

माँ की लोरी (maa ki lori ) : लोरी में छिपी खुशबू

 

 

माँ की लोरी (maa ki lori )
माँ की लोरी (maa ki lori )

 

जब तक होता था उजियारा,
माँ दूध बिलों देती थी सारा,
चीं-चीं करती चिड़ियों से,
आँगन महकता था हमारा,
सबके आँगन में पहले,
एक पेड़ पुराना होता था,
जो सबको नचाए उंगलियों पर,
हर आँगन एक बुजुर्ग बैठा होता था,
कहाँ ग‌ए वो मिट्टी के चुल्हे,
जिन चुल्हों में माँ सारा दिन आग जलाती थी,
अब वो मीठी नींद कहाँ है,
जो माँ की लोरी (maa ki lori ) सुनकर आती थी,
अब वो किस्से-कहानियां कहाँ है,
जिन्को माँ हर रात सुनाती थी,
*        *        *         *
आजकल माँ की लोरीयां
शायद कम सुनाई देती हैं,
पर माँ का प्यार करने का तरीका वो ही है,
नींद कभी आँखों से यदि हो जाती है गायब,
माँ का सुलाने का तरीका आज भी वो ही है,
दिन बदलते रहते हैं थोडा बदलना तो जायज है,
माँ आज भी बच्चों की दिल की नायक हैं,
पढ़ी-लिखी है आज की माँ,
प्यार की सरगम की साज है माँ,
दिन में तारे दिखने लगते थे,
जब माँ कान के पीछे बजाती थी,
अब वो मीठी नींद कहाँ है,
जो माँ की लोरी (maa ki lori ) सुनकर आती थी,
अब वो किस्से-कहानियां कहाँ है,
जिन्को माँ हर रात सुनाती थी,
*        *        *         *
बच्चे बदल सकते हैं पर,
माँ का बदलना मुश्किल है,
वो जुबान से ज़हर उगल सकतें हैं,
पर माँ का उगलना मुश्किल है,
माँ आज भी नहीं सोती जब तक,
हमारी आँखों में नींद ना आए जाए,
वो चैन की सांस नहीं लेती,
जब तक हमारे चेहरे पर,
सुख की छाँव ना आ जाए,
कहाँ गया वो खुशी बचपन की,
जब माँ आटे की चिड़िया बनाकर खिलाती थी,
अब वो मीठी नींद कहाँ है,
जो माँ की लोरी (maa ki lori ) सुनकर आती थी,
अब वो किस्से-कहानियां कहाँ है,
जिन्को माँ हर रात सुनाती थी,
*        *        *         *                                                                                                                                                                                     creater- राम सैनी

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